अलबर्ट आइन्स्टीन के कथन में प्रेम शब्द नहीं परन्तु इसकी सच्ची अभिव्यक्ति मिलती है----"मैं तो प्रतिदिन यह अनुभव करता हूँ कि मेरे भीतरी और बाहरी जीवन के निर्माण में कितने अनगिनत व्यक्तियों के श्रम का हाथ रहा है. इस अनुभूति से उद्दीप्त मेरा अंतःकरण कितना छटपटाता है कि मैं कम से कम इतना तो विश्व को दे सकूं, जितना कि मैंने उससे अभी तक लिया है.