कोलंबिया के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. फ्रैंक आयटे लॉटे ने एक बार आइंस्टीन के सम्मान में प्रीति-सम्मेलन आयोजित किया। उपस्थित मेहमानों के सम्मुख कुछ बोलने के लिए जब आइंस्टीन से आग्रह किया गया तो वे उठ खड़े हुए और बोले - 'सज्जनों! मुझे खेद है कि मेरे पास आप लोगों से कहने के लिए अभी कुछ भी नहीं है', इतना कहकर आइंस्टीन अपनी जगह पर बैठ गए।
मेहमानों पर प्रतिक्रिया अच्छी नहीं हुई। आइंस्टीन ने असंतोष भाँप लिया और पुन: मंच पर पहुँचे - 'मुझे क्षमा कीजिएगा, जब भी मेरे पास कहने के लिए कुछ होगा, मैं स्वयं आप लोगों के सम्मुख उपस्थित हो जाऊँगा।' छ: वर्ष बाद डॉ. आटे लॉटे को आइंस्टीन का तार मिला - 'बंधु, अब मेरे पास कहने जैसा कुछ है।'
शीघ्र ही प्रीति-सम्मेलन का आयोजन हुआ। इस बार आइंस्टीन ने अपने 'क्वांटम सिद्धांत' की व्याख्या की, जो किसी भी मेहमान के पल्ले नहीं पड़ी।
मेहमानों पर प्रतिक्रिया अच्छी नहीं हुई। आइंस्टीन ने असंतोष भाँप लिया और पुन: मंच पर पहुँचे - 'मुझे क्षमा कीजिएगा, जब भी मेरे पास कहने के लिए कुछ होगा, मैं स्वयं आप लोगों के सम्मुख उपस्थित हो जाऊँगा।' छ: वर्ष बाद डॉ. आटे लॉटे को आइंस्टीन का तार मिला - 'बंधु, अब मेरे पास कहने जैसा कुछ है।'
शीघ्र ही प्रीति-सम्मेलन का आयोजन हुआ। इस बार आइंस्टीन ने अपने 'क्वांटम सिद्धांत' की व्याख्या की, जो किसी भी मेहमान के पल्ले नहीं पड़ी।