17 जून, 2011

डिसलेक्सिया नामक बीमारी से पीड़ित थे आइंस्टाइन

सापेक्षवाद का सिद्धांत देने वाले प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टाइन का जन्म 14 मार्च 1889 को जर्मनी के उल्म शहर में एक सामान्य यहूदी परिवार में हुआ था। अपने हमउम्र बालकों के साथ खेल में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं थी। स्कूल में अनुशासन में रहना भी पसंद नहीं था। आपको आश्चर्य होगा कि यह मशहूर वैज्ञानिक जिसके जन्मदिन को ‘जीनियस डे’ के रूप में मनाया जाता है, को बचपन में मंदबुद्धि बालक तक समझा जा चुका है। दरअसल आइंस्टाइन बचपन से डिसलेक्सिया नामक बीमारी से पीड़ित थे।

इस बीमारी के कारण उन्हें अक्षरों को ठीक से पहचान पाने में बहुत मुश्किल होती थी, उनकी स्मरण शक्ति कमजोर थी साथ ही लिखने, पढ़ने व बोलने में भी उन्हें बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता था। हालत यह थी कि वे 13 साल की उम्र तक अपने जूतों के फीते भी ठीक ढंग से नहीं बांध पाते थे। आइंस्टाइन की स्थिति उसी तरह की थी जैसे कि हिन्दी फिल्म ‘तारे जमीं पर’ के प्रमुख बाल कलाकार ईशान अवस्थी की। डॉक्टरों ने उन्हें मानसिक रूप से विकलांग घोषित किया हुआ था। इस बीमारी के चलते उनके साथ आ रही कठिनाइयों से परेशान होकर स्कूल में उन्हें ‘मंदबुद्धि बालक‘ तक कह दिया गया था। लेकिन 1921 में जब आइंस्टाइन ने ‘ला ऑफ फोटोइलेक्ट्रिक इफेक्ट’ की खोज की और इसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला तो इसने उनके बारे में लोगों की धारणा बदल दी।
1905 में आइंस्टाइन ने भौतिकी की मासिक पत्रिका भी निकाली। 1990 में स्नातक की परीक्षा पास करने के पश्चात भौतिकी के क्षेत्र में आइंस्टाइन ने कई सिद्धांत दिए। उन्होंने विज्ञान से संबंधित 300 से अधिक पुस्तकें लिखीं। तरल पदार्थों में छोटे कण दिशाहीन होकर एक स्थान से दूसरे स्थान तक दौड़ते रहते हैं यह थ्योरी आइंस्टाईन की ही दी हुई है। आइंस्टाइन से पहले पदार्थ और ऊर्जा के विषय में यही अवधारणा थी कि पदार्थ और ऊर्जा अलग-अलग हैं किन्तु आइंस्टाइन ने इसे गलत साबित कर दिया, उन्होंने बताया कि पदार्थ को ऊर्जा में या ऊर्जा को पदार्थ में परिवर्तित किया जा सकता है। यही उनका सापेक्षता सिद्धांत था, जिसने उन्हें प्रसिद्धि के शिखर तक पहुंचाया। अपने अद्वितीय सिद्धांतों के कारण कई पुरस्कार और सम्मान उनके नाम हैं। इस महान वैज्ञानिक को 1999 में टाइम पत्रिका ने युग पुरुष की संज्ञा दी।
दोस्तों हाल ही में अल्बर्ट आइंस्टाइन का एक फोटो नीलाम किया गया जो 49,300 पाउंड में बिका। उनका यह दुर्लभ चित्र वर्ष 1951 में प्रिंस्टन विश्वविद्यालय में लिया गया था इसमें आइंस्टाइन ने आश्चर्य से जीभ बाहर निकाली हुई है। इस चित्र को आइंस्टाइन के 72वें जन्मदिन पर आयोजित पार्टी में न्यूयार्क के लांग आईलैंड के दुर्लभ पुस्तकों और आटोग्राफ के एक डीलर ने खरीदा।
एक और खास बात, यह प्रसिद्ध विज्ञानी संगीत प्रेमी भी था। खाली समय में वे मोजार्ट का संगीत सुनते व वॉयलिन बजाते थे। युद्ध को वे बहुत खतरनाक मानते थे। एक बार उनसे प्रश्न किया गया कि तीसरा विश्वयुद्ध किस तरह के हथियारों से लड़ा जाएगा? इस बारे में उनका जवाब था कि यह तो नहीं कहा जा सकता किन्तु इतना जरूर कह सकता हूं कि चौथा विश्वयुद्ध पत्थरों से लड़ा जाएगा... क्योंकि तीसरे विश्वयुद्ध से यह उन्न्त सभ्यता नष्ट हो जाएगी और मानव पुनः पाषाण युग में पहुंच जाएगा।