Biography

 अलबर्ट आइन्स्टीन
अगर कोई इतिहास के सर्वाधिक जीनिअस व्यक्ति के बारे में प्रश्न करता है तो लगभग सभी के दिमाग में अलबर्ट आइन्स्टीन का नाम कौंध जाता है. उसके विश्वप्रसिद्ध सापेक्षकता के सिद्धांत (Theory of Relativity) और क्वांटम भौतिकी में उसकी खोजों ने लोगों के देखने का नजरिया ही बदल दिया.
आइन्स्टीन ने पहली बार प्रकाश विद्युत प्रभाव की व्याख्या प्लांक के क्वांटम परिकल्पना के आधार पर कीजिसके अनुसार प्रकाश ऊर्जा के छोटे छोटे बंडलों के रूप में चलता है. यह क्वांटम भौतिकी की शुरुआत थी. इस कार्य के लिए आइन्स्टीन को 1921 का भौतिकी का नोबेल पुरूस्कार दिया गया. आइन्स्टीन ने पहली बार अपने विश्व प्रसिद्ध फार्मूले E=mc2 द्बारा बताया कि पदार्थ तथा ऊर्जा को परस्पर बदलना संभव है.
सन 1905 आइन्स्टीन के लिए और भौतिक जगत के लिए भाग्यशाली सिद्ध हुआ. जब आइन्स्टीन के पांच रिसर्च पेपर जर्मनी के भौतिकी जर्नल में प्रकाशित हुएइन रिसर्च पेपरों ने भौतिक जगत में तहलका मचा दिया.

पहला पत्र प्रकाश विद्युत प्रभाव की प्लांक सिद्धांत के आधार पर व्याख्या करता था. इससे पहले प्रकाश किरणों के बारे में माना जाता था की वह तरंगों के रूप में चलता है. लेकिन इस सिद्धांत के बाद प्रकाश की द्वैत प्रकृति सामने आई. पता चला की प्रकाश तरंग और कण दोनों की तरह व्यवहार करता है. 1921 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार उसे इसी कार्य के लिए मिला.
दूसरा पत्र ब्राउनियन गति पर आधारित था. जिसमें अणुओं की मुक्त गति की व्याख्या की गई थी. इस व्याख्या से पदार्थ के आणविक व परमाण्विक मॉडल को बल मिला. इस पत्र में आइन्स्टीन ने प्रोबेबिलिटी थ्योरी का समावेश कियाजिसने क्वांटम भौतिकी को दृढ गणितीय आधार दिया. आगे इस विषय को आइन्स्टीन ने भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द्रनाथ बोस के साथ डेवेलप किया और बोस आइन्स्टीन सांख्यकी की स्थापना की. साथ ही अणुओं तथा मूल कणों के व्यवहार से संबधित दूसरी शाखाएं भी इससे डेवेलप हुईं जिनमें फर्मी डिराक सांख्यकी प्रमुख है.
तीसरा पत्र पदार्थ व ऊर्जा का मशहूर सम्बन्ध E=mc2 था. पहली बार यह रहस्योद्घाटन हुआ कि पदार्थ को ऊर्जा में बदला जा सकता है. यहीं से दुनिया परमाणु ऊर्जा से परिचित हुई.
चौथे पत्र में सापेक्षकता के विशेष सिद्धांत (Special Theory of Relativity) को ज़ाहिर किया गया था. यह एक कठिन थ्योरी है. आम भाषा में कहा जाए तो ब्रह्माण्ड के सारे घटक एक दूसरे के सापेक्ष गति में हैं. जब हम कोई पिंडस्टार इत्यादि देखते हैं तो उसकी द्रष्टव्य स्थिति उसकी स्पीडदूरी और समय (Space-Time) पर निर्भर करती है. मान लिया कोई तारा हमारी पृथ्वी से पांच सौ प्रकाश वर्ष दूर है. इसका मतलब हुआ की हम उसकी पांच सौ वर्ष पहले की स्थिति देख रहे हैं. वर्तमान में तो वह कहीं और होगा. और अगर उसकी स्पीड बहुत तेज़ है तो उसका आकार भी उसकी रुकी अवस्था के आकार से भिन्न दिखाई देगा.

इस थ्योरी से कई चमत्कारी निष्कर्ष निकले. जैसे कि कोई पदार्थ प्रकाश के वेग से या उससे अधिक वेग से नहीं चल सकता. साथ ही अत्यधिक वेग से चलने पर वस्तुओं का द्रव्यमान बढ़ जाता है जबकि लम्बाई घट जाती है. इस थ्योरी ने निर्वात में युनिवर्सल माध्यम ईथर की परिकल्पना को निरस्त कर दिया.
इन पेपर्स के प्रकाशन के दस वर्ष बाद 1915 में आइन्स्टीन ने एक और आश्चर्यजनक थ्योरी दी जनरल थ्योरी आफ रिलेटिविटी (सापेक्षकता का व्यापक सिद्धांत). इसमें उसने सापेक्षकता में गुरुत्वाकर्षण को भी शामिल कियाउसने बताया की प्रकाश के पथ पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव पड़ता है. नतीजे में जो सीधा आकाश हम देखते हैं असलिअत में वह वक्र (Curve) होता है. या यूं कहा जाए कि एक सीधा आकाश हम वक्र रूप में देखते हैं. और व्यापक बनाते हुए उसने कहा कि गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) स्पेस-टाइम का घुमाव (Distortion) होता हैजो मैटर की वजह से पैदा होता है. और यह घुमाव (Distortion) दूसरे पदार्थों की गति पर प्रभाव डालता है.

कुछ सिद्धांतों पर आइन्स्टीन का समकालीन वैज्ञानिकों के साथ विवाद भी हुआ. जिनमें क्वांटम भौतिकी के क्षेत्र में नील्स बोर द्बारा प्रस्तुत सिद्धांत प्रमुख है. इसमें बताया गया कि एलेक्ट्रोन नाभिक के परितः किसी कक्षा में कुछ प्रोबबिलिटी (Probability) के साथ चक्कर लगाता है. इसपर आइन्स्टीन ने कहा कि ईश्वर पांसे नहीं फेंकता.

आइन्स्टीन की धार्मिक आस्था विवादास्पद है. कुछ लोग उसे आस्तिक मानते हैं तो कुछ नास्तिक. लेकिन इतना तय है की वह किसी धर्म विशेष के अनुसार ईश्वर या गाॅड को नहीं मानता था. उसके कथन के अनुसार दुनिया किसी ऐसी शक्ति ने बनाई है जिसके बारे में हम कुछ नहीं जानते.

आइन्स्टीन ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष यूनिफाइड फील्ड थ्योरी (Unified Field Theory) पर कार्य करते हुए गुजारेजो उसकी मृत्यु के बाद भी अधूरी रही. इस थ्योरी में प्रकृति के चार मूल बलों गुरुत्वाकर्षणविद्युतचुम्बकीयतीव्र तथा क्षीण नाभिकीय बलों का संयुक्तीकरण करना था. आज भी इस थ्योरी पर कार्य जारी है.

  सापेक्षवाद का सिद्धांत देने वाले प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टाइन का जन्म 14 मार्च 1889 को जर्मनी के उल्म शहर में एक सामान्य यहूदी परिवार में हुआ था। अपने हमउम्र बालकों के साथ खेल में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं थी। स्कूल में अनुशासन में रहना भी पसंद नहीं था। आपको आश्चर्य होगा कि यह मशहूर वैज्ञानिक जिसके जन्मदिन को ‘जीनियस डे’ के रूप में मनाया जाता हैको बचपन में मंदबुद्धि बालक तक समझा जा चुका है। दरअसल आइंस्टाइन बचपन से डिसलेक्सिया नामक बीमारी से पीड़ित थे।

इस बीमारी के कारण उन्हें अक्षरों को ठीक से पहचान पाने में बहुत मुश्किल होती थीउनकी स्मरण शक्ति कमजोर थी साथ ही लिखनेपढ़ने व बोलने में भी उन्हें बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता था। हालत यह थी कि वे 13 साल की उम्र तक अपने जूतों के फीते भी ठीक ढंग से नहीं बांध पाते थे। डॉक्टरों ने उन्हें मानसिक रूप से विकलांग घोषित किया हुआ था। इस बीमारी के चलते उनके साथ आ रही कठिनाइयों से परेशान होकर स्कूल में उन्हें ‘मंदबुद्धि बालक‘ तक कह दिया गया था। लेकिन 1921 में जब आइंस्टाइन ने ‘ला ऑफ फोटोइलेक्ट्रिक इफेक्ट’ की खोज की और इसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला तो इसने उनके बारे में लोगों की धारणा बदल दी।

छः साल के बालक अल्बर्ट आइंस्टाइन को जर्मनी के म्यूनिख शहर के सबसे अच्छे स्कूल में भरती किया गया। इन स्कूलों को उन दिनों जिम्नेजियम कहा जाता था और उनकी पढ़ाई दस वर्षों में पूरी होती थी। इस बालक के शिक्षक उससे बहुत परेशान थे। वे उसकी एक आदत के कारन हमेशा उससे नाराज़ रहते थे – प्रश्न पूछने की आदत के कारण। घर हो या स्कूलअल्बर्ट इतने ज्यादा सवाल पूछता था कि सामनेवाला व्यक्ति अपना सर पकड़ लेता था। एक दिन उसके पिता उसके लिएएक दिशासूचक यन्त्र खरीद कर लाये तो अल्बर्ट ने उनसे उसके बारे में इतने सवाल पूछे कि वे हैरान हो गए। आज भी स्कूलों के बहुत सारे शिक्षक बहुत ज्यादा सवाल पूछनेवाले बच्चे को हतोत्साहित कर देते हैंआज से लगभग १२५ साल पहले तो हालात बहुत बुरे थे।
अल्बर्ट इतनी तरह के प्रश्न पूछता था कि उनके जवाब देना तो दूरशिक्षक यह भी नहीं समझ पते थे कि अल्बर्ट ने वह प्रश्न कैसे बूझ लिया। नतीजतनवे किसी तरह टालमटोल करके उससे अपना पिंड छुड़ा लेते।
जब अल्बर्ट दस साल का हुआ तो उसके पिता अपना कारोबार समेटकर इटली के मिलान शहर में जा बसे। अल्बर्ट को अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए म्यूनिख में ही रुकना पड़ा।
परिवार से अलग हो जाने के कारण अल्बर्ट दुखी था। दूसरी ओरउसके सवालों से तंग आकर उसके स्कूल के शिक्षक चाहते थे कि वह किसी और स्कूल में चला जाए। हेडमास्टर भी यही चाहता था। उसके अल्बर्ट को बुलाकर कहा – “यहाँ का मौसम तुम्हारे लिए ठीक नहीं है। इसीलिए हम तुम्हें लम्बी छुट्टी दे रहे हैं। तबीयत ठीक हो जाने पर तुम किसी और स्कूल में दाखिल हो जाना।
अल्बर्ट को इससे दुःख भी हुआ और खुशी भी हुई।
अपनी पढ़ाई में अल्बर्ट हमेशा औसत विद्यार्थी ही रहे। प्रश्न पूछना और उनके जवाब ढूँढने की आदत ने अल्बर्ट को विश्व का महानतम वैज्ञानिक बनने में सहायता की।

1905 में आइंस्टाइन ने भौतिकी की मासिक पत्रिका भी निकाली। 1990 में स्नातक की परीक्षा पास करने के पश्चात भौतिकी के क्षेत्र में आइंस्टाइन ने कई सिद्धांत दिए। उन्होंने विज्ञान से संबंधित 300 से अधिक पुस्तकें लिखीं। तरल पदार्थों में छोटे कण दिशाहीन होकर एक स्थान से दूसरे स्थान तक दौड़ते रहते हैं यह थ्योरी आइंस्टाईन की ही दी हुई है। आइंस्टाइन से पहले पदार्थ और ऊर्जा के विषय में यही अवधारणा थी कि पदार्थ और ऊर्जा अलग-अलग हैं किन्तु आइंस्टाइन ने इसे गलत साबित कर दिया, उन्होंने बताया कि पदार्थ को ऊर्जा में या ऊर्जा को पदार्थ में परिवर्तित किया जा सकता है। यही उनका सापेक्षता सिद्धांत था, जिसने उन्हें प्रसिद्धि के शिखर तक पहुंचाया। अपने अद्वितीय सिद्धांतों के कारण कई पुरस्कार और सम्मान उनके नाम हैं। इस महान वैज्ञानिक को 1999 में टाइम पत्रिका ने युग पुरुष की संज्ञा दी। सच मानें, आज भी विश्व में उनके सापेक्षता के सिद्धांत को पूरी तरह से समझनेवालों की संख्या उँगलियों पर गिनी जा सकती है।