05 अक्तूबर, 2011

आइन्स्टीन से जुड़े कुछ तथ्य


1. अल्बर्ट आइंस्टाइन 3-4 वर्ष की उम्र तक ठीक से बोल भी नहीं पाते थे, साथ ही उनका दिमाग आम लोगों की तुलना में ज्यादा बडा था। डॉक्टर्स ने उन्हें मानसिक तौर पर विकलांग घोषित किया था। उनकी मौत के बाद पैथॉलॉजिस्ट ने उनके मस्तिष्क को शोध के लिए रखा था।
2. बचपन में उनके पसंदीदा विषय रेखागणित और दर्शनशास्त्र थे। एक बार पांच वर्ष की आयु में वह बीमार पडे तो उनके पिता ने उन्हें एक कंपास लाकर दिया, जिसने अल्बर्ट की जिंदगी बदल दी।
3. बुद्धि और ज्ञान से इतर अल्बर्ट के व्यक्तित्व का एक दिलचस्प पहलू यह था कि फुरसत के पलों में उनका पसंदीदा शौक था स्पो‌र्ट्स। अपने पठन-पाठन के बाद उन्हें कोई भी मानसिक कार्य करना नहीं भाता था। एक बार न्यूयॉर्क टाइम्स से उन्होंने साक्षात्कार में कहा था, जब एक बार मैं अपना कार्य समाप्त कर लेता हूं, मुझे ऐसा कोई काम अच्छा नहीं लगता, जिसमें दिमाग का काम होता हो।
4. लंबे समय तक यूनाइटेड स्टेट्स में रहने और दो भाषाओं के ज्ञान के बावजूद वह कभी अच्छी अंग्रेजी नहीं लिख पाए। उनकी लेखनी में वर्तनी और भाषा की कई खामियां निकलती थीं। अपने जर्मन स्वभाव को वह कभी नहीं छोड पाते थे।
5. आइंस्टाइन को सिगार पीना बहुत पसंद था। इतना कि एक बार वह नौका विहार के दौरान नदी में गिर गए और बाहर निकले तो पूरी तरह भीग चुके थे, लेकिन इस दौरान भी उन्होंने बडी हिफाजत से अपने पाइप को बचाए रखा। मॉन्ट्रियल स्मोकर्स क्लब के वह सदस्य थे। एक बार उन्होंने कहा था, सिगार पीने से दुनियादारी से जुडे या व्यावहारिक मामलों में सही नतीजों तक पहुंचने और शांत रह पाने में बहुत मदद मिलती है।
6. वह बहुत ही अयोग्य संगीतकार थे। चार्ली चैप्लिन की जीवनी में एक जगह आइंस्टाइन के संगीत प्रेम का उल्लेख आता है। वह अपनी किचन में जाकर वॉयलिन बजाते थे, खाली समय में मोजार्ट का संगीत सुनते थे, यानी संगीत से उन्हें दिली लगाव था और बचपन से बुढापे तक एक वॉयलिन उनके पास हमेशा रहा। लेकिन संगीत का ज्ञान उन्हें इतना कम था कि कई बार तो धुरंधरों के बीच में बैठकर भी बेसुरा संगीत आत्मविश्वास के साथ बजाते थे और लोगों की ओर दाद देने के लिए देखते। बाकी लोग हंसते, लेकिन उनकी पत्नी हमेशा उनकी हौसलाअफजाई करतीं।
7. एक बार अपने बचपन के बारे में बताते हुए वह बोले-मेरे पैर की अंगुलियां इतनी बडी थीं कि बचपन में हमेशा मेरे मोजे फट जाते थे। मैं इस बात से इतना क्षुब्ध हुआ कि आखिर में मोजे पहनना ही छोड दिया। आइंस्टाइन कुछ मूर्खतापूर्ण कार्य भी करते थे, मसलन किसी के सामने भी बहुत अच्छी तरह ड्रेस-अप होना उन्हें अच्छा नहीं लगता था। चाहे वे परिचितों के बीच में हों या अपरिचितों के बीच, उन्हें कोई फर्क नहीं पडता था।
8. महान साइंटिस्ट के संदर्भ में यह बात आश्चर्यजनक लगती है कि उन्हें साइंस फिक्शन सख्त नापसंद थे। बल्कि वह किसी को यह सब पढने को भी प्रोत्साहित नहीं करते थे। वह कहते थे, मैं भविष्य के बारे में कभी नहीं सोचता, वह तो आएगा ही, यही काफी है।
9. उनके व्यक्तित्व का एक बुरा सच यह है कि एक पति के रूप में आइंस्टाइन बहुत अच्छे और वफादार नहीं थे।विवाह के बारे में उनकी राय भी कुछ अच्छी नहीं थी। सभी विवाह खतरनाक होते हैं, वह अकसर कहा करते। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था - शादी महज एक घटना को पूर्णता तक पहुंचाने का विफल प्रयास है।
10. पशुओं से उन्हें बेहद लगाव था। घर में उन्होंने एक बिल्ली पाली थी, जो बरसात के समय में अवसादग्रस्त रहा करती। वह बिल्ली से कहते, मैं जानता हूं कि गलत हो रहा है, लेकिन मैं यह नहीं जानता कि इस बारिश को कैसे खत्म करूं।
11. महान वैज्ञानिक की स्मरण शक्ति बहुत खराब थी। व्यावहारिक दुनिया की बहुत सी बातें वे अक्सरहां भूल जाया करते थे। मसलन बच्चों का बर्थ डे या फिर कोई भी खास दिन। एक बार तो अपनी गर्ल फ्रेंड का बर्थ डे भी भूल गए। अगले दिन उन्होंने एक पत्र लिखकर इसकी माफी मांगी। उसमें लिखा-स्वीटहार्ट, पहले तो मेरी बधाइयां स्वीकारो अपने बीत चुके बर्थ डे के लिए...जो कल था और एक बार फिर मैं उसे भूल गया।


प्रकाशगति से तेज न्युट्रिनो या प्रायोगिक गलती ?


  

जेनेवा स्थित भौतिकी की दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला सर्न(CERN) में वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने परमाण्विक कण (Subatomic Particles) न्यूट्रिनो की गति प्रकाश की गति से भी ज़्यादा पाई है।
अगर ऐसा सच हुआ तो ये भौतिकी के मूलभूत नियमों को पलटने वाली खोज होगी। शोधकर्ता स्वीकार कर रहे हैं कि वे इस नतीजे से काफ़ी आश्चर्यचकित हैं और इसीलिए उन्होंने कोई दावा नहीं करते हुए अन्य लोगों से स्वतंत्र रूप से इसकी पुष्टि करने की अपील की है।
आइंस्टाइन के सापेक्षतावाद के सिद्धांत के अनुसार कोई भी कण प्रकाशगति से तेज नही चल सकता है। यदि यह निरीक्षण सत्य है तब भौतिकी की किताबो को नये सीरे से लिखना होगा।
इस प्रयोग के आंकड़े 1300 टन द्रव्यमाण के कण जांचयत्र(Particle Detector) ओपेरा(Oscillation Project with Emulsion-tRacking Apparatus) ने दीये है, जो कि इटली की ग्रान सेस्सो राष्ट्रीय प्रयोगशाला(Gran Sasso National Laboratory) मे स्थित है। ओपेरा ने CERN की युरोपीयन कण-भौतिकी प्रयोगशाला जीनेवा स्वीटजरलैण्ड से उत्सर्जित न्युट्रीनो कणो की जांच की। न्युट्रीनो कण किसी भी पदार्थ से कोई भी प्रतिक्रिया नही करते है और पृथ्वी के आरपार ऐसे निकल जाते है कि पृथ्वी का उनके लिए कोई आस्तित्व ही नही है। ओपेरा ने CERN प्रयोगशाला से निकले न्युट्रिनो कणो की बौछार को जांचा।
पिछले तीन वर्षो मे ओपेरा के वैज्ञानिको ने CERN से निकले लगभग 16,000 कणो को अपने जांचयंत्रो से पकड़ा। उन्होने पाया कि इन न्युट्रिनो ने 730 किमी की यात्रा 2.43 मीलीसेकंड मे की जो कि प्रकाशगति से 60 नैनो सेकंड कम है। वैज्ञानिको के अनुसार इस गणना मे 10 नैनो सेकंड की भूलचूक संभव है।
ओपेरा के वैज्ञानिक आश्चर्यचकित है। लेकिन वे कहते है कि उनके परिणामों को गलत ठहराना जल्दबाजी होगी। वे आगे कह रहे है कि उनके पास आश्चर्यजनक परिणाम है और अब वैज्ञानिक समुदाय को आगे आकर इसकी जांच करना चाहीये।
यह एक बड़ा प्रश्न है कि ओपेरा के वैज्ञानिको ने प्रकाशगति से तेज यात्रा करने वाले कणो की खोज करली है या वे किसी अनजानी नियमित गलती(systematic error)“ से दिशाभ्रमित हुये है, जिसके परिणाम स्वरूप गणना के परिणाम प्रकाशगति से तेज आये हैं।
स्टोनी ब्रूक विश्वविद्यालय(Stony Brook University) न्युयार्क के न्युट्रिनो भौतिकशास्त्री चांग की जंग (Chang Kee Jung) इस परिणाम को नियमित गलती(systematic error)” का परिणाम ठहरा रहे है और इस पर अपने मकान की शर्त लगाने तैयार हैं। उनके अनुसार इस तरह के प्रयोगों मे प्रोटानो को किसी ठोस लक्ष्य से तेजगति से टकराया जाता है, इस टकराव से न्युट्रीनो उत्पन्न होते है। इस प्रक्रिया मे यह तय नही होता है कि न्युट्रिनो कब उत्पन्न हुये हैं, प्रोटानो के ठोस लक्ष्य से टकराने के समय और न्युट्रिनो की उत्पत्ति के समय मे अंतर हो सकता है। प्रोटानो के ठोस लक्ष्य से टकराने के समय और न्युट्रिनो के कण जांचक तक के पहुंचने का समय GPS(Global Positioning System) पर निर्भर होता है। GPS की गणना मे भी 10 नैनो सेकंड से ज्यादा की गलती की संभावना होती है। इसलिये ओपेरा के वैज्ञानिको द्वारा केवल 10 नैनो सेकंड की गलती की संभावनाका दावा संदेहास्पद है।
इंडीयाना विश्वविद्यालय ब्लूमिंगटन(Indiana University, Bloomington) के वैज्ञानिक कोस्टेलेक्की (V. Alan Kostelecky) के अनुसार इसके पहले का कोई भी प्रयोग इन परिणामों को झुठलाता नही है। कोस्टेलेक्की ने मानक प्रतिकृति (Standard Model) के विस्तार मे 25 वर्ष दिये है, यह विस्तार कण भौतिकि मे विशेष सापेक्षतावाद के सभी प्रकार के उल्लंघनो(violation) की व्याख्या करता है। वे कहते है कि यदि यह नया परिणाम कहता कि इलेक्ट्रान प्रकाशगति से तेज चल सकता है तब मुझे आश्चर्य होता। लेकिन न्युट्रिनो के प्रकाशगति से तेज चलने की संभावना है।
कोस्टेलेक्की कहते है किअसाधारण दावो के लिए असाधारण प्रमाण चाहीये होते है।(Extraordinary claims require extraordinary evidence)इस प्रयोग के प्रवक्ता एन्टोनीओ एरेडीटाटो(Antonio Ereditato) जोकि बर्न विश्वविद्यालय मे भौतिकविज्ञानी है, कहते है, केवल एक परिणाम असाधारण प्रमाण नही होता है।

सापेक्षता के सिद्धांत में आइंस्टीन बताते हैं कि हमारे आसपास और इस ब्रह्मांड में जो कुछ भी घटता है, उसके लिए प्रकृति का मूलभूत कार्य-कारण सिद्धांत यानि कॉज एंड इफेक्ट ही जिम्मेदार है। सापेक्षतावाद के साथ आइंस्टीन ने एक ऐसे नियम की खोज की जो इस संपूर्ण ब्रह्मांड, हमारे आस-पास के इस संपूर्ण दृश्य जगत और खुद हमारी जिंदगी की आधारशिला है। वो सार्वभौम नियम ये है कि परमाणु के भीतर मौजूद ऊर्जा कणों से लेकर ब्रह्मांड के विशालतम पिंड तक प्रकाश की गति सीमा का उल्लंघन नहीं कर सकते। सापेक्षतावाद में आइंस्टीन ने बताया और अब इसकी पुष्टि भी हुई है कि ये संपूर्ण सृष्टि खुद को कुछ इस तरह से संतुलित रखती है कि कोई भी चीज प्रकाश की गति की सीमा को पार न कर सके।
आइंस्टीन बताते हैं कि 'टाइम-स्पेस एंड लाइट' यानि समय-काल और प्रकाश की गति वो तीन आधारस्तंभ हैं जिनपर संपूर्ण ब्रह्मांड और ये सृष्टि टिकी है और संचालित हो रही है। सापेक्षतावाद में 'टाइम-स्पेस एंड लाइट' यानि समय-काल और प्रकाश की गति के अंतर संबंधों की व्याख्या करते हुए आइंस्टीन ने ब्रह्मांड और सृष्टि के उदभव रहस्यों को समझाया है। भारतीय दर्शन में वर्णित सत्यम्-शिवम्-सुंदरम् की अवधारणा इसके काफी करीब है। सत्यम् यानि समय या 'TIME', शिवम् यानि काल या 'SPACE' और सुंदरम् यानि प्रकाश या 'LIGHT' । ये भी अदभुत साम्य है कि भारतीय दर्शन में समय को अंतिम सत्य, काल यानि मृत्यु और फिर जन्म या पुनर्निर्माण को शिव और मोक्ष या ज्ञान को प्रकाश कहा गया है।
सापेक्षतावाद के अनुसार किसी चीज का वेग बढ़ाने से उसका द्रव्यमान भी बढ़ता है और उसी अनुपात में बढ़ा हुआ गुरुत्वाकर्षण बल उस चीज के आसपास, चारों ओर के स्पेस पर असर डालता है और उसे मोड़ देता है। अगर आप प्रकाश के वेग से चलना चाहें तो आपका द्रव्यमान अनंत हो जाएगा, जिसे प्रकाश का वेग देने के लिए अनंत ऊर्जा की जरूरत होगी। ये संभव नहीं है, इसलिए ब्रह्मांड की कोई भी चीज एक तो प्रकाश के वेग की बराबरी नहीं कर सकती, और अगर कर भी लिया तो किसी भी सूरत में वो ब्रह्मांड में वेग की इस उच्चतम सीमा- प्रकाश के वेग का उल्लंघन नहीं कर सकती। क्योंकि ऐसा करते ही वो चीज भूतकाल में चली जाएगी। क्योंकि प्रकाश का वेग हासिल कर लेने पर समय जीरो हो जाता है और प्रकाश की रफ्तार से आगे निकलने पर समय ऋणात्मक यानि भूतकाल में चला जाता है। यही है 'टाइम ट्रैवेल' यानि वेग को नियंत्रित कर समय में भविष्य और भूतकाल की यात्रा करने का रहस्य। आइंस्टीन ने सापेक्षतावाद में इसे गणितीय रूप से साबित किया है, लेकिन साथ ही ये भी बताया है कि प्रकाश की गति से आगे निकलकर भूतकाल की यात्रा करना असंभव है। क्योंकि ब्रह्मांड के जन्म के बाद से इसे संचालित करने वाले तीनों मुख्य नियंत्रकों समय-काल और प्रकाश की गति ने इस संपूर्ण सृष्टि का डिजाइन कुछ इस तरह से रचा है कि ये हमेशा आगे की ओर बढ़ता है...भविष्य की ओर। आइंस्टीन के सापेक्षतावाद में मौजूद कार्य-कारण या कॉज एंड इफेक्ट सिद्धांत भी यही है। संपूर्ण सृष्टि कुछ इस तरह से काम कर रही है कि प्रकाश के अलावा कोई भी दूसरी चीज गति की इस अंतिम सीमा को हासिल न कर सके।
'टाइम-स्पेस एंड लाइट' यानि समय-काल और प्रकाश की गति के ताने-बाने में एक हल्का सा स्पंदन हुआ है। ओपेरा नाम के हाई-इनर्जी पार्टिकिल फिजिक्स के एक प्रयोग से कुछ ऐसे नतीजे आए हैं कि संपूर्ण वैज्ञानिक जगत भौचक्का है। ऊर्जा कण न्यूट्रिनो ने ब्रह्मांड के नियम का उल्लंघन करते हुए प्रकाश से भी तेज रफ्तार प्रदर्शित की है। इस प्रयोग से जुड़े भौतिकविज्ञानी आश्चर्यचकित हैं कि ऐसा कैसे हुआ? क्या सापेक्षतावाद के सिद्धांतों को गढने में आइंस्टीन से कोई भूल हो गई? अगर ये सही है तो फिर इसके नतीजे बड़े व्यापक होंगे और फिजिक्स के सारे नियम-सारे सिद्धांत फिर से लिखने पड़ेंगे।

सूरज के केंद्र में एक खास ऊर्जा कण जन्म लेते हैं, जिनका नाम है न्यूट्रिनो। सौर विकिरण के तूफान के साथ अरबों-खरबों की तादाद में न्यूट्रिनो कण पूरे सौरमंडल में बिखर जाते हैं। न्यूट्रिनो में ना के बराबर द्रव्यमान होता है और इनमें कोई इलेक्टि्रिक चार्ज नहीं होता। न्यूट्रिनो की सबसे बड़ी खासियत ये है कि कोई भी चीज उन्हें रोक नहीं पाती और किसी भी तरह का कोई नुकसान पहुंचाए बगैर, वो सामने आने वाली हर चीज के आर-पार निकल जाते हैं। हमारे आसपास की हर चीज के हरेक एक वर्ग सेंटीमीटर के दायरे से सूरज से जन्म लेने वाले 60 अरब न्यूट्रिनो कणों की बौछार हर सेकेंड गुजर रही है। न्यूट्रिनो उच्च ऊर्जायुक्त कण हैं और इनकी मौजूदगी परमाणु के भीतर भी महसूस की गई है। न्यूट्रिनो इतने सूक्ष्म हैं कि किसी भी सूक्ष्मदर्शी से इन्हें देखा नहीं जा सकता, हां कुछ बेहद संवेदनशील सेंसर्स की मदद से इनकी मौजूदगी का अनुभव जरूर किया जा सकता है। 
लेकिन न्यूट्रिनो के ये कण केवल सूरज से ही नहीं पैदा होते, इन्हें जेनेवा में जमीन से 100 मीटर नीचे मौजूद दुनिया की सबसे बड़ी भौतिकी प्रयोगशाला सेर्न में बनाया भी जाता है। सेर्न की एक खास एक्सीलरेटर मशीन सुपर प्रोटॉन सिंक्रोटॉन यानि एसपीएस से हर दिन अरबों-खरबों न्यूट्रिनोज की ऊर्जा-किरण पैदा की जाती है। हर दिन न्यूट्रिनोज की ये ऊर्जा-किरण सेर्न से 732 किलोमीटर दूर इटली के बीचोंबीच जमीन के नीचे मौजूद एक दूसरी प्रयोगशाला ग्रान सैसो पार्टिकिल एक्सीलेरेटर की ओपेरा डिटेक्टर मशीन की ओर छोड़ी जाती है। न्यूट्रिनोज की ये किरण मात्र ढाई मिलीसेकेंड में जेनेवा से इटली के बीच की 732 किलोमीटर की दूरी तय कर लेती है। ओपेरा एक्सपेरीमेंट के नाम से सेर्न और इटली के ग्रान सैसो पार्टिकिल एक्सीलरेटर के बीच ये प्रयोग तीन साल से हर दिन दोहराया जा रहा है।

सेर्न की एसपीएस मशीन से न्यूट्रिनोज की बौछार करीब प्रकाश की गति यानि 2,99,792.458 किलोमीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से छोड़ी जाती है। लेकिन ओपेरा एक्सपेरीमेंट में काम कर रहे वैज्ञानिक तीन साल से एक खास चीज नोटिस कर रहे हैं, जिससे उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं है। जेनेवा से छूटकर इटली के ग्रैन सैसो के डिटेक्टर में पहुंचने वाले न्यूट्रिनोज आइंस्टीन के नियम का पालन नहीं कर रहे हैं। ये न्यूट्रिनोज प्रकाश से भी तेज गति से आकर टकरा रहे हैं। सापेक्षता सिद्धांत के 106 साल के दौरान प्रकाश से तेज गति कभी नहीं देखी गई। फिजिक्स के नियमों के अनुसार ये असंभव है।
ओपेरा एक्सपेरीमेंट के वैज्ञानिकों को पहले लगा कि शायद प्रयोग में कुछ गड़बड़ी है। जेनेवा के सेर्न से लेकर इटली के ग्रान सैसो एक्सिलेरेटर तक हर चीज, हर प्रक्रिया कई-कई बार जांची परखी गई, लेकिन हर बार सेर्न से आने वाले न्यूट्रिनोज की रफ्तार प्रकाश की गति के मुकाबले एक सेकेंड के 60 अरबवें हिस्से जितनी ज्यादा तेज रेकार्ड की गई। प्रकाश की सनातन गति सीमा के उल्लंघन की घोषणा करने से पहले ओपेरा एक्सपेरीमेंट के वैज्ञानिक तीन साल तक अपने प्रयोग की खामियां तलाशते रहे। लेकिन उन्हें प्रयोग में एक भी कमी, एक भी गड़बड़ी नहीं मिली। वैज्ञानिकों ने अब दुनिया के दूसरे वैज्ञानिकों से ये प्रयोग दोहराने की अपील की है। अगर दूसरी प्रयोगशालाओं के नतीजों से भी प्रकाश की गति सीमा के टूटने की बात सामने आ गई, तो ये साइंस की अब तक की सबसे बड़ी खोज और चंद्रमा पर पैर रखने से भी बड़ी उपलब्धि साबित होगी।

सेर्न और ग्रान सैसो के ओपेरा प्रयोग के नतीजों ने वर्तमान और भूतकाल के बीच की सीमारेखा धुंधला दी है। भले ही गणितीय रूप से ही सही, लेकिन समय के पीछे जा सकने और भूतकाल में सूचना भेज सकने की संभावनाएं जगा दी हैं। प्रकाश के वेग का उल्लंघन कर रहे न्यूट्रिनोज ने कार्य-कारण यानि कॉज एंड इफेक्ट के मूलभूत सिद्धांत को ही पलट कर ब्रह्मांड के आधारभूत नियमों के बारे में मानवजाति की अब तक की सारी समझ को ही तहस-नहस कर डाला है।
इटली के ग्रान सैसो में ओपेरा प्रयोग के समन्वयक एंटोनियो रेडिटाटो बताते हैं,प्रयोग के नतीजों से हम भौचक्के हैं, लेकिन इन नतीजों को हम तब तक नई खोज का नाम नहीं दे सकते, जब तक कि दूसरे वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशालाओं में इन नतीजों की पुष्टि नहीं कर देते। अगर आप किसी बुनियादी चीज के बारे में बात कर रहे हैं तो आपको बहुत सावधान रहना चाहिए।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पार्टिकिल थ्योरी के विभागाध्यक्ष डॉ. सुबीर सरकार ने प्रतिक्रिया में कहा है, अगर ये नतीजे दूसरी जगह भी साबित हो गए, तो ये मानव इतिहास में अब तक की सबसे विलक्षण घटना होगी। ये कुछ ऐसा है, जिसके बारे में कभी किसी ने सपने में भी कल्पना नहीं की थी। प्रकाश की गति वो आधारशिला है जिसपर स्पेस और टाइम के बारे में हमारी सारी समझ टिकी है। सही मायनों में जो ये बताता है कि कॉज के बाद ही इफेक्ट आता है। यानि कोई भी कार्य बिना किसी कारण के नहीं हो सकता। कभी ऐसा नहीं हो सकता कि इफेक्ट पहले आ जाए और उसका कॉज बाद में, पूरे ब्रह्मांड का जन्म ही इसी बुनियाद पर हुआ है। अगर कार्य-कारण सिद्धांत भंग होता है तो फिर हम नहीं समझ पाएंगे कि ब्रह्मांड का जन्म कैसे हुआ। ये काफी अराजक स्थिति होगी।” 

भौतिकशास्त्री डॉ. एलेन कॉस्टेलेकी और उनकी टीम ने 1985 में प्रस्तुत एक सिद्धांत में बताया था कि निर्वात में मौजूद एक अज्ञात क्षेत्र से संपर्क कर न्यूट्रिनो प्रकाश की गति सीमा को तोड़ सकते हैं। इंडियाना यूनिवर्सिटी में प्रकाश की गति से भी तेज जाने की संभावना तलाशने के एक रिसर्च में शामिल डॉ. कॉस्टेलेकी कहते हैं, हालांकि भौतिकशास्त्री अब दूसरी जगहों पर पुष्टि होने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन ऐसे नतीजों का आना ही अपनेआप में काफी रोमांचक है। इस प्रयोग की पृष्ठभूमि में ये भी कहा जा सकता है कि हम ब्रह्मांड में जिस सबसे तेज रफ्तार की बात अब तक करते आए थे मुमकिन है कि वो रफ्तार प्रकाश के बजाय न्यूट्रिनोज की हो। हम सबसे तेज रफ्तार का मालिक अब तक प्रकाश को समझते रहे, और अब असलियत सामने आई है कि असली चीज तो न्यूट्रिनो है।
डॉर्टमंड यूनिवर्सिटी के फिजिसिस्ट हेनरिक पाएस एक अनोखा मॉडल पेश करते हैं, जिससे ग्रान सैसो के नतीजों को समझने में मदद मिलती है। हेनरिक कहते हैं कि मुमकिन है कि सेर्न से छूटने वाले न्यूट्रिनोज स्पेस और टाइम में एक अतिरिक्त डायमेंश के जरिए एक शॉर्टकट बनाकर इटली के ग्रान सैसो पहुंच रहे हों। इससे ग्रान सैसो के ओपेरा डिटेक्टर में काम करने वाले वैज्ञानिकों को यही महसूस होगा कि न्यूट्रिनो प्रकाश की गति से तेज सफर कर रहे हैं।
सेर्न और इटली के ग्रान सैसो के प्रयोग को जापान के टीटूके और अमेरिका में शिकागो के नजदीक फर्मीलैब में माइनॉस एक्सपेरीमेंट के जरिए दोहराया जा रहा है। और इस न्यूट्रिनोज के प्रकाश की गति से तेज चलने या ना चलने के बारे में पहला समाचार अब यहीं से मिलेगा। इस सिलसिले में खास बात ये है कि 2007 में माइनॉस एक्सपेरीमेंट के वैज्ञानिकों ने न्यूट्रिनोज के प्रकाश की गति से भी तेज चलने का दावा किया था, लेकिन दूसरी प्रयोगशालाओं में इसकी पुष्टि नहीं हो सकी थी।