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14 जून, 2011

बोस-आइंस्टाइन सिद्धांत की मूल प्रति मिली


 साभारः नोबेल प्राइज़.ऑर्ग
बोस और आइंस्टाइन के सिद्धांत पर नोबेल पुरस्कार समिति की वेबसाइट का पन्न
नीदरलैंड में एक छात्र ने अल्बर्ट आइंस्टाइन के हाथ के लिखे कुछ अनमोल पन्ने ढूँढ निकाले हैं जो उन्होंने भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस के साथ मिलकर किए गए शोध के दौरान लिखे थे.

रॉडी बोयनिक को उनके शोध के दौरान अचानक कुछ दस्तावेज़ों के बीच से ये पन्ने मिले.

दरअसल बोयनिक आइंस्टाइन के एक क़रीबी दोस्त के काग़ज़ों की पड़ताल कर रहे थे, उसी पुलिंदे में से उन्हें आइंस्टाइन के बनाए हुए ग्राफ़ और वैज्ञानिक नोट मिले.

आइंस्टाइन के दोस्त पॉल एर्नस्फेस्ट लीडेन विश्वविद्यालय में विज्ञान के प्रोफ़ेसर थे.

दिलचस्प बात ये भी है कि ये कागज़ उस शोध से जुड़े हुए हैं जो आइंस्टाइन ने भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस के साथ मिलकर किया था.

नीदरलैंड के लीडेन विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर कार्लो बीनकेर कहते हैं, "हमारे हाथ एक अनमोल चीज़ लगी है, आप उस कागज़ पर कहीं कहीं आइंस्टाइन की ऊँगलियों के निशान भी देख सकते हैं."

कहा जाता है कि यह महान वैज्ञानिक का बनाया हुआ अंतिम वैज्ञानिक सिद्धांत था.

सोलह पन्ने के इस नोट को 1924 में तैयार किया गया था, आइंस्टाइन-बोस का यह सिद्धांत सही है यह साबित करने में वैज्ञानिकों को सत्तर वर्ष से अधिक समय लगा. 1995 में वैज्ञानिकों ने माना कि यह सिद्धांत बिल्कुल सही है.

बोस की उपलब्धियाँ

नोबेल पुरस्कार की वेबसाइट का कहना है कि भारतीय वैज्ञानिक बोस ने प्रकाश के मूल तत्व फोटोन के बारे में गहन शोध किया था.

आइंस्टाइन की हाथ की लिखी कॉपी
आइंस्टाइन के हस्तलिखित नोट

उन्होंने अपना शोध आइंस्टाइन को भेजा था जिससे वे बहुत प्रभावित हुए और बोस के शोध पत्र का ख़ुद जर्मन में अनुवाद किया और उसे एक प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित कराया.

बोस के इस सिद्धांत को आइंस्टाइन ने और आगे बढ़ाया और उन्होंने न सिर्फ़ प्रकाश बल्कि अन्य पदार्थों के अणुओं का भी अध्ययन उसमें जोड़ दिया.

वर्ष 2001 में तीन वैज्ञानिकों एरिक कॉर्नेल, वुल्फ़गैंग केटरल और कार्ल वेमन को बोस-आइंस्टाइन सिद्धांत को सही साबित करने के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया.

पहली जनवरी 1894 को कलकत्ता में एक रेलवे इंजीनियर के घर जन्मे बोस ने भौतिकी और गणित के कई महत्वपूर्ण सिद्धांत दिए, वे चौंतीस वर्ष की उम्र में पहली बार पेरिस पहुँचे जहाँ उन्होंने मादाम क्यूरी प्रयोगशाला में एक वर्ष तक शोध किया.

यहाँ उन्हें अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक बिरादरी ने हाथों-हाथ लिया और वे अपने समय के प्रख्यात वैज्ञानिक के रूप में उभरे.

सिद्धांत

आइंस्टाइन के इस सिद्धांत का नाम था-- क्वांटम थ्योरी ऑफ़ द मोनोएटोमिक आइडियल गैस.

इस सिद्धांत में आइंस्टाइन ने यह पता लगाने की कोशिश की थी कि कोई गैस बहुत कम तापमान पर किस तरह काम करती है.

आइंस्टाइन-बोस सिद्धांत का कहना था कि शून्य से काफ़ी नीचे के तापमान पर गैस के अणु अपनी ऊर्जा पूरी तरह खो देते हैं और वे एक नई अवस्था में चले जाते हैं जहाँ एक अणु को दूसरे से भिन्न करना संभव नहीं रहता.

हेग के निकट स्थित लीडेन विश्वविद्यालय का कहना है कि यह कागज़ विश्वविद्यालय के भौतिकी विभाग के संग्रह में रखा जाएगा.

इस विश्वविद्यालय से आइंस्टाइन का बहुत गहरा संबंध था और वे यहाँ पढ़ाते भी रहे थे.