स्टीफन हॉकिंग वैज्ञानिक हैं, किसी तर्कवादी संगठन या अंधविश्वास उन्मूलन संस्था के अध्यक्ष नहीं हैं, इसलिए ईश्वर को लेकर उनके विचारों को उसी परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए। हॉकिंग की एक नई किताब ‘द ग्रैंड डिजाइन’ शीघ्र ही आने वाली है और उन्होंने उसमें प्रतिपादित किया है कि विज्ञान के नियम कहते हैं कि इस सृष्टि के लिए किसी सृष्टा की जरूरत नहीं है। इसलिए वे मानते हैं कि ईश्वर ने दुनिया नहीं बनाई।
हॉकिंग लंबे अर्से से भौतिक शास्त्र की सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण पहेली सुलझाने में लगे हैं। आइन्स्टाइन के सापेक्षता सिद्धांत और क्वांटम सिद्धांत को जोड़ने वाली कड़ी या समीकरण को खोजना। यह विरोधाभास लंबे वक्त से भौतिक शास्त्र को उलझाए हुए है, क्योंकि दोनों ही सिद्धांत भौतिकी की दुनिया में सही साबित हुए हैं, लेकिन उनके बीच पटरी नहीं बैठ रही है। दार्शनिक स्तर पर हॉकिंग की कोशिश उनके मुताबिक दुनिया बनाने वाले ईश्वर के दिमाग को समझने की थी। आइन्स्टाइन का एक प्रसिद्ध वाक्य है कि ईश्वर दुनिया के साथ जुआ नहीं खेलता। इसके जवाब में हॉकिंग ने जो कहा, वह भी लगभग उतना ही प्रसिद्ध है। कुछ बरस पहले दिल्ली में दिए गए अपने भाषण में हॉकिंग ने कहा था- ईश्वर न सिर्फ जुआ खेलता है, बल्कि अक्सर उसके पासे ऐसी जगह चले जाते हैं कि उसे भी पता नहीं चलता। हॉकिंग का अब तक मानना था कि दुनिया बनाने वाले का भी दुनिया बनाने की प्रक्रिया पर कोई नियंत्रण नहीं है। हॉकिंग अपनी नई किताब में यह प्रतिपादित करते हैं कि दुनिया बनाने के लिए ईश्वर की जरूरत ही नहीं है। पश्चिमी चिंतन में आस्तिक और नास्तिकों के बीच विवाद का इतिहास पुराना है। पश्चिमी परंपरागत चिंतन के मुताबिक ऐसा एक ईश्वर है जिसने सोच-समझ कर एक योजना के तहत दुनिया बनाई। नास्तिक और भौतिकवादी लोग इस विचार के खिलाफ हैं और आज तक दोनों के बीच लाठियां भांजने का काम बदस्तूर जारी है। अब भी कई परंपरावादी डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को स्कूलों में पढ़ाए जाने के विरुद्ध हैं, क्योंकि वह बाइबिल में दिए गए सृष्टि की उत्पत्ति के वर्णन के विरुद्ध है। इसके बरक्स यह एक दिलचस्प तथ्य है कि भारत या दूसरे तथाकथित पिछड़े या परंपरावादी देशों में डार्विन के सिद्धांत का ऐसा विरोध नहीं हुआ। सभी छात्र स्कूलों में यह सिद्धांत पढ़ते हैं और घोर परंपरावादी लोग भी पश्चिमी परंपरावादियों की तरह यह आग्रह नहीं करते कि साथ ही साथ धर्मग्रंथों में मौजूद वर्णन भी पढ़ाया जाए। इसकी वजह यह है कि भारतीय आम समझदारी भी यह मानती है कि सत्य सापेक्ष होता है। विज्ञान में डार्विन का सिद्धांत सही है, क्योंकि वह विज्ञान का सत्य है, धर्मग्रंथों का सत्य उनकी अपनी जगह ठीक है। इसलिए घोर आस्तिक वैज्ञानिक भी विज्ञान में काम करते हुए अपनी धार्मिकता को आड़े आने नहीं देते। अधकचरे परंपरावादी ही धर्म और विज्ञान की घालमेल करके यह साबित करने में लगे होते हैं कि हमारे धर्मग्रंथों में जो है, वह सब विज्ञानसम्मत है या वेदों में सारे आधुनिक वैज्ञानिक तथ्य मौजूद हैं। वैसे भी हमारे शास्त्रों और विचार में ईश्वर की जो जगह है, उसमें यह विवाद व्यर्थ है कि उसका अस्तित्व है या नहीं। बहरहाल, हॉकिंग की किताब हमेशा की तरह चर्चित और विचारोत्तेजक होगी, बाकी उससे सहमत-असहमत होने के लिए पाठक हमेशा स्वतंत्र हैं।