17 जून, 2011

आइन्स्टीन और कुम्हार ...

मेरे प्रिय, मैं अपनी बात उस महान वैज्ञानिक से शुरू करता हूँ जो देश दुनिया में घूमघूम कर अपने व्याखयान से सभी को विज्ञान के प्रति जागरूक कर रहा था, आप उस वैज्ञानिक को भलि-भाँति जानते भी हैं बताएं वह कौन था - आइन्स्टीन। ठीक बताया आपने विल्कुल ठीक बताया।

तो बात उस समय की है जब उनका व्याखयान समाप्त होता है और वे टहलने के लिए पैदल ही निकलते हैं, अभी कुछ दूर बढते हैं। रास्ते में सड़क के किनारे एक कुम्हार अपनी चाकी चला रहा है और मन चाहे ढंग की कृति तैयार कर रहा है। यह देखकर वे रूक जाते हैं, और मग्न होकर उसकी विलक्षण योग्यता एवं उसके द्वारा गढ कर तैयार की जाने वाली सृष्टि को बड़ी देर तक देखते रहते हैं।

फिर उससे कहते हैं तुम तो बहुत कुशल व्यक्ति हो, भगवान के लिए अपनी कला का कोई नमूना मुझे भी दो। ताकि मैं इसे ले जाकर औरों को भी दिखा सकूँ कि ऐसा भी होता है।

कुम्हार ने तुरन्त अपनी सबसे सुन्दर कलाकृति प्रेम से उनके हाथ में रखते हुए कहा- यह लीजिए, यह आपके इश्वर के लिए। और जब वे पर्स से पैसे निकालकर उसे देने लगे तो कुम्हार ने कहा- ये पैसे किस बात के लिए, आपने अपने लिए तो कुछ मांगा ही नही, यह तो भगवान के लिए मांगा है, तो आप ही बताइए- भगवान से कोई पैसे लेता है क्या?

यह सुनकर वे अवाक रह गये, उसे प्रणाम किया और चल दिए। किन्तु इसके बाद वे जब भी व्याखयान देते, उस घटना का जिक्र करना नही भूलते। आइन्स्टीन का कहना है- प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई ऐसा गुण जरूर होता है जिसे खोजकर आत्मसात किया जा सकता है। मैं स्वयं इसकी पूरी कोशिश करता हूँ, और आपको भी ऐसा करना चाहिए। क्योंकि यहाँ तो पूरा जीवन ही पाठशाला है। जीवन का हर क्षण, प्रत्येक घटना अपने में कोई न कोई सीख समेटे हुए होती है। बस हमें अपने अन्दर ललक पैदा करनी चाहिए, इच्छाशक्ति बढ़ानी चाहिए और दृढ विश्वास उत्पन्न करना चाहिए।